संत रविदास जयंती माघ मास की पूर्णिमा तिथि के दिन मनाई जाती है। रविदास जी का जन्म माघ पूर्णिमा के दिन उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर स्थित गोवर्धनपुर गांव में 1376 ईस्वी हुआ था। पंजाब में उन्हें रविदास के नाम से जाना जाता है। जबकि उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश में उन्हें रैदास के नाम से जाना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि जिस दिन रविदास जी का जन्म हुआ था उस दिन माघ पूर्णिमा के साथ साथ रविवार का दिन था इसलिए उनका नाम रविदास रखा गया।
रविदास जी का जन्म ऐसे समय में हुआ था जब उत्तर भारत के कुछ क्षेत्रों में मुगलों का राज हुआ करता था। चारों तरफ हाहाकार मचा हुआ था। हर तरफ अत्याचार, भ्रष्टाचार से लोग परेशान थे। ऐसे समय में रविदास जी की ख्याति बढ़ रही थी। लाखों की संख्या में लोग उनके भक्त थे। ऐसे में एक सदना पीर नाम का व्यक्ति उनके पास आया और उन्हें धर्म परिवर्तन के लिए कहने लगा उसने सोचा अगर रविदास जी धर्म परिवर्तन कर लेते हैं तो उनके लाखों भक्त भी धर्म बदल लेंगे। लेकिन, रविदास जी ने धर्म से पहले हमेशा मानवता को रखा।
रविदास जी ने हमेशा ही भेदभाव को दूर कर सामाजिक एकता का प्रचार प्रसार किया। संत रविदास जी अपनी कविताओं के जरिए भी यही संदेश दिया करते थए। वह अपनी कविताओं में जनसाधारण की ब्रजभाषा का प्रयोग किया करते थे। इसके अलावा वह अपनी कविताओं में अवधि , उर्दू-फारसी, राजस्थानी, खड़ी बोली और रेख़्ता आदि का भी प्रयोग किया करते थे। उनके चालीस पद पवित्र धर्म ग्रंथ गुरुग्रंथ साहब में भी सम्मिलित किए गए। कहा जाता है कि कृष्ण भक्त मीराबाई भई उनकी शिष्य थी। कहा तो यह भी जाता है कि चित्तौड़ के राणा सांगा की पत्नी झाली रानी भई उनकी शिष्य थी। चित्तौड़ में संत रविदास की छतरी भी बनी है। वाराणसी में भी आपको संत रविदास जी का मठ और भव्य मंदिर देखने को मिलेगा।